फलों का राजा आम (Mango) उपयोगी फल है , आम की खेती अमूमन सब जगह की जाती है। आम से आचार ,चटनी ,जैम ,जैली और सिरप आदि बनाए जाते है। यह विटामीन एव बी का अच्छा स्त्रोत है। इसके फल को खाया एवं ज्यूस के रूप में उपयोग किया जाता है जो बहुत ही स्वादिष्ट होता है। नई तकनीक से किसान Mango Farming: आम की खेती से होंगे मालामाल और अधिक लाभ कमाएंगे ।
आम की खेती कैसे करे ?
वर्तमान में किसानों और खासकर युवाओं का रुझान बागवानी में बढ़ा है। आम की खेती अब व्यवसायिक रूप से की जाती है। Discover Farming के इस आर्टिकल में जानते है की कैसे आम की खेती कर अधिक से अधिक लाभ कमा सकते है –
भूमि एव जलवायु
आम की खेती उष्ण एव समशीतोष्ण दोनों ही प्रकार की जलवायु में की जाती है। आम की खेती समुद्र तल से 600 मीटर की ऊँचाई तक सफलता पूर्वक होती है इसके लिए 23.5 से 26.5 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान अति उत्तम होता है। आम की खेती प्रत्येक किस्म की भूमि में की जा सकती है। इसके लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी जाती है। परन्त अधिक बलुई, पथरीली, क्षारीय तथा जल भराव वाली भूमि में इसे उगाना फायदेमंद नहीं है।
उन्नत किस्म
भारत में उगाई जाने वाली किस्मों में, दशहरी, लगडा, चौसा, केसर, फजली , बाम्बे ग्रीन, अलफांसो , तोतापरी, नीलम, सुवर्णरेखा, आम्रपाली आदि प्रमुख उन्नत किस्में है। आम की नयी विकसित किस्मों में मल्लिका, आम्रपाली, दशहरी-५ दशहरी-५१, अम्बिका, तथा रत्ना प्रमुख प्रजातियां हैं।
भूमि एवं गढढों की तैयारी
जुलाई -अगस्त में आम के पौधों को लगाने के लिए उपयुक्त माना गया है। जिन क्षेत्रों में वर्षा आधिक होती है वहां वर्षा के अन्त में आम का बाग लगाना चाहिए। लगभग 50 सेन्टीमीटर व्यास एक मीटर गहरे गड्डे मई माह में खोद कर उनमें लगभग 30 से 40 किलो ग्राम प्रति गढ्ढा सड़ी गोबर की खाद मिटटी में मिलाकर और 100 ग्राम क्लोरोपाइरिफास पाउडर मिलाकर गड्डो में भर देना चाहिए। पौधों की किस्म के अनुसार 10 से 12 मीटर पौधे से पौधे की दूरी होनी चाहिए, परन्तु आम की आम्रपाली किस्म के लिए यह दूरी 2.5 मीटर ही होनी चाहिए।
आम की फसल में प्रवर्धन या प्रोपोगेशन
आम के बीज से पौधे तैयार करने के लिए आम की गुठलियों को जून-जुलाई में बुवाई कर दी जाती है। आम की प्रवर्धन की विधियों में भेट कलम, विनियर, साफ्टवुड ग्राफ्टिंग, प्रांकुर तथा बडिंग प्रमुख हैं, विनियर एवं साफ्टवुड ग्राफ्टिंग द्वारा अच्छे किस्म के पौधे कम समय में तैयार कर लिए जाते हैं।
खाद एवं उर्वरक का प्रयोग
आम के बगीचे की दस साल की उम्र तक प्रतिवर्ष उम्र के गुणांक में नाइट्रोजन, पोटाश तथा फास्फोरस प्रत्येक को १०० ग्राम प्रति पेड़ जुलाई में पेड़ के चारों तरफ बनायी गयी नाली में देनी चाहिए। इसके अतिरिक्त मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक दशा में सुधार हेतु 25 से 30 किलोग्राम गोबर की सड़ी खाद प्रति पौधा देना उचित पाया गया है। जैविक खाद हेतु जुलाई-अगस्त में 250 ग्राम एजीसपाइरिलम को 40 किलोग्राम गोबर की खाद के साथ मिलाकर थाले में डालने से उत्पादन में वृदि पाई गयी है।
सिंचाई
आम के लिए बाग़ लगाने के प्रथम वर्ष सिंचाई 2-3 दिन के अन्तराल पर आवश्यकतानुसार करनी चाहिए 2 से 5 वर्ष पर 4-5 दिन के अन्तराल पर आवश्यकता अनुसार करनी चहिये। तथा जब पेड़ों में फल लगने लगे तो दो तीन सिंचाई करनी अति आवश्यक है। आम के बागों में पहली सिचाई फल लगने के पश्चात दूसरी सिचाई फलो का काँच की गोली के बराबर अवस्था में तथा तीसरी सिचाई फली की पूरी बढ़वार होने पर करनी चाहिए। सिचाई नालियों द्वारा थाले में ही करनी चाहिए जिससे की पानी की बचत हो सके और खरपतवार कण उगे ।
आम के बाग में निराईगुड़ाई और खरपतवारों का नियंत्रण
आम के बाग को साफ रखने के लिए निराई गुड़ाई तथा बागों में वर्ष में दो बार जुताई कर देना चाहिए इससे खरपतवार तथा भूमिगत कीट नष्ट हो जाते हैं इसके साथ ही साथ समय समय पर घास निकलते रहना चाहिए। प्रथम तीन वर्षों तक आप बाग में आम के साथ – साथ दूसरी फसल भी ले सकते है जिससे अधिक लाभ प्राप्त हो सके ।
रोग और उसका नियंत्रण
आम में रोगों का प्रबन्धन कई प्रकार से करते है। जैसे की पहला आम के बाग में पावडरी मिल्डयू यह एक बीमारी लगती है, इनसे बचाने के लिए घुलनशील सल्फर 2 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में या ट्राईमार्फ़ 1 मिली प्रति लीटर पानी या डाईनोकैप 1 मिली प्रति लीटर पानी घोलकर प्रथम छिड़काव बौर आने के तुरन्त बाद दूसरा छिड़काव 10 से 15 दिन बाद तथा तीसरा छिड़काव उसके 10 से 15 दिन बाद करना चाहिए आम की फसल की एन्थ्रक्नोज फोमा ब्लाइट डाईबैक तथा रेडरस्ट से बचाव के लिए कापर आक्सीक्लोराईड 3 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर 15 दिन के अन्तरालपर वर्षा ऋतु प्रारंभ होने पर दो छिड़काव तथा अक्टूबर-नवम्वर में 2-3 छिड़काव करना चाहिए। जिससे की हमारे आम के बौर आने में कोई परेशानी न हो। इसी प्रकार से आम में माल्फमेंशन भी बीमारी लगती है इसके उपचार के लिए कम प्रकोप वाले आम के बागो में जनवरी फरवरी माह में बौर को तोड़ दें एवम अधिक प्रकोप होने पर एन.ए.ए. 200 पी.पी.एम रसायन की 900 मिली प्रति 200 लीटर पानी घोलकर छिड़काव करना चहिये। इसके साथ ही साथ आम के बागो में कोयलिया रोग भी लगता है। जिसको किसान भाई सभी आप लोग जानते हैं इसके नियंत्रण के लिए बोरेक्स या कास्टिक सोडा 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फल लगने पर तथा दूसरा छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए जिससे की कोयलिया रोग से हमारे फल खराब न हो सके।
कीट और उनका नियंत्रण
आम में भुनगा फुदका कोट, आम के छल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट, आम में डासी मक्खी ये कीट है। आम की फसल की फुदका कीट से बचाव के लिए एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर प्रथम छिड़काव फूल खिलने से पहले करते है। दूसरा छिड़काव जब फल मटर के दाने के बराबर हो जाये, तब कार्बरिल 4 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलकर छिड़काव करना चाहिए। इसी प्रकार से आम की फसल की गुझिया कीट से बचाव के लिए दिसंबर माह के प्रथम सप्ताह में आम के तने के चारों ओर गहरी जुताई करे, तथा क्लोरोपईरीफ़ास चूर्ण 225 ग्राम प्रति पेड़ तने के चारो बुरक दे, यदि कीट पेड़ पर चढ़ गए हो तो एमिडाक्लोरपिड 0.3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर जनवरी माह में 2 छिड़काव 15 दिन के अंतराल पर करना चाहिए तथा आम के छाल खाने वाली सुंडी तथा तना भेदक कीट के नियंत्रण के लिए मोनोक्रोटीफास 0.5 प्रतिशत रसायन के घोल में रूई को भिगोकर तने में किये गए छेद में डालकर छेद बंद कर देना चाहिए। एस प्रकार से ये सुंडी खत्म हो जाती है। आम की मक्खी के नियंत्रण के लिए मिथाईलयूजीनाल ट्रैप का प्रयोग प्लाई लकड़ी के टुकडे की अल्कोहल मिथाईल एवम मैलाथियान के छ: अनुपात चार अनुपात एक के अनुपात में घोल में 48 घंटे डुबोने के पश्चात पेड़ पर लटकाए ट्रैप मई के प्रथम सप्ताह में लटका दें तथा ट्रैप को दो माह बाद बदल दें।
फसल की तुड़ाई
आम की परिपक्व फलो की तुड़ाई 8 से 10 मिमी लम्बी डंठल के साथ करनी चाहिए, जिससे फली पर स्टेम राट बीमारी लगने का खतरा नहीं रहता है। तुड़ाई के समय फलों की चोट व खरोच न लगने दें, तथा मिटटी के सम्पर्क से बचायें। आम के फलों का श्रेणीक्रम उनकी किस्म , आकार, भार, रंग व परिपत्ता के आधार पर करना चाहिए।
औसतन उपज
आम में रोगों एवं कीटो के पूरे प्रबंधन पर प्रति पेड़ लगभग 150 किलोग्राम से 200 किलोग्राम तक उपज प्राप्त हो सकती है। लेकिन किस्मों के आधार पर यह पैदावार अलग-अलग होती है।
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